बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
रेनांसा और सामाजिक सुधार (Renaissance and Social Reform) - रेनांसा सामाजिक आन्दोलन का वह स्वरूप है जिसने सामाजिक सुधार आन्दोलन को एक नया आयाम दिया। समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों और मनीषियों ने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक अन्धविश्वासों के विरुद्ध आन्दोलन को खड़ा किया। रेनांसा एक तरफ आधुनिक प्रवृत्तियों का समर्थक रहा है दूसरी तरफ वह जड़वादी समाज का विरोधी। इसमें गतिशील धारणा समाहित है जो समायानुसार समाज में बदलाव लाने का पक्षधर है। वस्तुतः रेनांसा एक सापेक्षिक शब्द है। रेनांसा का शाब्दिक अर्थ है नवयुग, पुनर्जागरण, नवजीवन आदि। ये सभी शब्द सापेक्षिक और गतिशील हैं। देश और युग के सन्दर्भ में उसके अर्थों में संकुचन और विस्तार होता रहता है। सांस्कृतिक प्रक्रिया का यह एक अनिवार्य प्रकरण है। उदाहरण परवर्ती वैदिककाल में कर्मकाण्ड की अधिकता ने आर्यों की सामाजिक व्यवस्था में एक जटिलता पैदा कर दी थी जिसका अनिवार्य परिणाम जैन तथा बौद्ध धर्म के नव जागरण में हुआ I
आर्यों का समानता पर आधारित वह समाज विधान, जो यज्ञ के अन्दर पोषित होता था, आगे चलकर स्वयं ही वर्गों में विभाजित हो गया था। बौद्ध और जैन सम्प्रदायों में संघ की स्थापना द्वारा उसी आधार को पुनर्जीवित किया गया। अपने अन्तर्निहित तत्वों के कारण बौद्ध धर्म भी जब पतन के कगार पर खड़ा हुआ, उस समय ब्राह्मण धर्म के नव जागरण ने न केवल दर्शन विद्या के क्षेत्र में नवीन अध्यायों का आवर्तन किया बल्कि भारतीय राजशक्ति को भी वह दृढ़ता प्रदान की जिससे वह विदेशियों के सम्मुख अडिग रह सकी और जब ब्राह्मण धर्म अपने विघटनशील तत्वों में टूटकर जकड़ गया जो फिर भारतीय इतिहास में एक लम्बे अध्याय का आरम्भ हुआ जिसे मोटे अर्थों में मध्ययुगीन जागरण कह सकते हैं।
इस दृष्टि से 11वीं शताब्दी से भारतीय रेनांसा का आरम्भ मानना विवेकपूर्ण नहीं है। प्रायः, विद्वान रेनांसा का जन्म औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप मानते हैं, किन्तु केवल इसी आधार पर भारतीय रेनांसा को 18वीं शताब्दी तक घसीट ले जाना न्यायसंगत नहीं है। वैसे तो हर युग की अपनी विशेषता होती है, जो इतिहास को प्रभावित करती है। परन्तु उसकी मूलभूत धारा बहुत कुछ गति से प्रभावित होती है। 18वीं, 19वीं शताब्दी में जिन विद्वानों और विचारकों को नव जागरण का प्रणेता माना जाता है, वे विचारों के क्षेत्र में कोई मौलिक क्रान्ति नहीं लाये थे। उनकी विचारधारा या तो प्राचीन विचारधारा का नवीन संस्करण है, या भारतीय और पाश्चात्य संस्कृतियों के सम्मिलन का प्रयास। इसलिये भी रेनांसा को केवल औद्योगिक क्रान्ति की देन नहीं कह सकते हैं। इस विचारधारा के पोषण के लिये एक दूसरा कारण भी दिया जा सकता है। इतिहास की वैज्ञानिक अवधारणा ने यह सिद्ध कर दिया है कि विकास के विभिन्न युग बहुत कुछ समानान्तर चलते हैं। यूरोप में रेनांसा का प्रारम्भ, अन्तिम धर्मयुद्ध 1270 के बाद के 75 वर्षों (1275-1350) तक माना जाता है और भारतीय रेनासां काल भी इस काल के समकक्ष, अर्थात् 8वीं शताब्दी से प्रारम्भ हो जाता है।
फ्रांसीसी लेखक ई. जे. देलाब्लूज सम्भवतः प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने एक विशिष्ट युग एवं स्थान अर्थात् उत्तर मध्यकालीन, उत्तरी एवं मध्य इटली में पाश्चात्य ईसाई धर्म जगत पर मृत यूनानी सभ्यता के संघात का वर्णन करने के लिए पहली बार रेनांसा, (पुनर्जागरण) शब्द का प्रयोग किया था। अर्नाल्ड जे. टायनबी ने रेनांसा को इतिहास के अध्ययन का एक औजार मानते हुए लिखा है कि, "रेनांसा की खोज में डूबने से पूर्व हमें यह भी कह देना चाहिये कि इस प्रकार की घटनाओं को वर्तमान एवं अतीत के बीच होने वाली दो भिन्न प्रकार की टक्करों से भिन्न रूप में ग्रहण करना होगा। इनमें से एक तो मरणोन्मुख व मृत सभ्यता एवं उसके भ्रूण अथवा शिशु उत्तराधिकारी के बीच उत्तराधिकारी एवं सम्बद्धता का सम्बन्ध इसे एक सामान्य एवं आवश्यक घटना के रूप में लेना चाहिए, जैसे कि उस पर पितृत्व एवं पुत्रत्व के उदाहरण के हमारे आरोहण में सन्निहित है। इसके विपरीत, रेनांसा तो एक विकसित सभ्यता एवं उसके बहुत पूर्व मरे हुए जनक के प्रेत के बीच की संघात टक्कर है। पर्यात रूप से सामान्य होते हुए भी असामान्य रूप में उसका वर्णन होना चाहिए। परीक्षा करने पर वह प्रायः अस्वास्थकर निकलता है। वर्तमान और अतीत के बीच दूसरा संघात जिससे रेनांसाओं को भिन्न मानना चाहिए, वह घटना का दृश्य प्रपंच है जिसे हमने पुराणवाद के नाम से पुकारा है, और उसका प्रयोग समाज विकास की उस आरम्भिक अवस्था में लौट जाने का प्रयास करने के अर्थ में किया है, जिसमें पुराणवादी स्वयं रहे होते हैं।
वर्तमान और अतीत के बीच होने वाले संघात के तीन प्रकारों में एक और अन्तर की स्थापना की गयी। उत्तराधिकार एवं सम्बद्धता के सम्बन्ध या रिश्ते में इतना तो स्पष्ट ही है कि जिन दो समाजों का सम्पर्क होता है, वे विकास की बड़ी ही भिन्न, बल्कि विपरीत श्रेणियों में होते हैं। अपनी जरावस्था में जनक तो विघटनशील समाज होता है, सन्तति एक नवजात शिशु फिर एक पुराणोन्मुख व्यक्ति मामलों की एक ऐसी स्थिति के मोहपाश में आबद्ध हो जाता है जो उसकी स्थिति से बहुत अधिक भिन्न होती है, नहीं तो पुराणोन्मुख क्यों हो? इसके विपरीत रेनांसा में प्रवेश करने वाला समाज अपने जनक के प्रेत को उस अवस्था वाला जनक मानकर पुकारता है। जब जनक विकास की इस श्रेणी में थे जिसमें सन्तति अब पहुँची है।
"रेनांसा" शब्द के लिये हिन्दी में दो शब्द प्रयोग किये जाते हैं- पुनर्निर्माण और 'नवजागरण। विकासशील चेतना को ध्यान में रखते हुये "नव जागरण" शब्द अधिक सार्थक है। पुनर्जागरण का अभिप्राय अतीत की उसी विशिष्ट चेतना का जागरण भी हो सकता है अथवा यह अतीत के सर्वग्राही मोह को भी व्यंजित कर सकता है। इसके विपरीत, जागरण विकास की नवीन भूमि का निर्माण करता है। अतीत के सृजनात्मक तत्वों को ग्रहण करते हुये भी वह रूढ़ियों को नकारता है, उनसे विद्रोह करता है।
वास्तव में, नव जागरण का सम्बन्ध इतिहास के किसी पक्ष विशेष से नहीं होता है। यह तो *मूलतः मानव की प्रगतिगामी चेतना है जो काल के अन्तराल से विस्फेट करती है और उसके परिणामस्वरूप इतिहास के गुण से दूसरे युग में छलांग परिलक्षित होती है। नव जागरण की भावना में मानव आत्मा की स्वतन्त्रता प्राति की आकुल उत्कण्ठा छिपी रहती है जो मानवीय संसार के निर्माण में प्रेरणा का कार्य करती है। उसमें संसार के पुनर्निर्माण की भावना होती है। मानववाद, कलाओं का मुख्य मूल्य निर्धारण करता है और अतीत के प्रति आकर्षण एक नयी सृजनात्मक भूमिका उपस्थित करता है। वास्तव में, यह देखना अत्यन्त आवश्यक है कि भारतीय नव जागरण के विभिन्न युगों में सुधार की कौन-कौन सी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई और चुनौतियों से किस प्रकार लड़ा जाए। सामाजिक सुधार की पृष्ठभूमि में सामाजिक चेतना की उन परिस्थितियों को भी देखना होगा, जिन्होंने सामाजिक आन्दोलन को प्रेरित किया। इसलिये पूर्ववर्ती रेनांसा की पृष्ठभूमि जानना आवश्यक है।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?